भारत के गाँवों में खुले में शौच और मल फेंकने की समस्या। इसी विषय को लेकर अध्ययन का परिणाम व् हमारी सिफ़ारिशें
A pit-dumping truck in Darbhanga district, Bihar ©IDinsight/Vinod Sharma
भारत खुले में शौच को ख़त्म करने और मल प्रबंधन के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहा है। 2014 में शुरू किए गए स्वच्छ भारत मिशन से सरकार ने 2019 तक देश को खुले में शौच मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा। स्वच्छ भारत मिशन की कई उपलब्धियाँ हैं। पिछले पाँच सालो में पूरे भारत में लगभग छह लाख गाँवों में क़रीब 10 करोड़ नए शौचालय बने। 706 ज़िलों 36 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों को खुले में शौच-मुक्त घोषित किया गया।
जिस गति के साथ सरकार ने ग्रामीण भारत में शौचालय बनाए वो प्रभावशाली है। शौचालय का उपयोग भी बढ़ने लगा है। हालांकि, अब भी स्वास्थ्य से जुड़े जोखिम का सामना करना पड़ रहा है। कुछ सालों में इन नए टॉयलेट के टैंक भरने शुरू हो जाएंगे लेकिन अब भी अनिश्चितता है कि टैंक के मल को कहां फेंका जाएगा। खुले में फेंकने से स्वास्थ्य संबंधित कई चुनौतियों का सामान करना पड़ेगा।
हमने दरभंगा ज़िले (बिहार) और नालगोंडा ज़िले (तेलंगाना) में 40–40 किसानों के साथ अध्ययन किया। यह शोध एक पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में था। हमारी टीम यहां स्वच्छता प्रबंधन को बेहतर ढंग से समझना चाहती थी। हालांकि यह IDinsight के विशिष्ट कार्यों से अलग है।
हमने अध्यन में पाया कि शौचालय गड्डो से निकला मल खेतों में या गाँवों के बाहर खुली जगह में फेंक दिया जाता है। हमारी सिफ़ारिशें शोधकर्ताओं के शोध के प्रभावों की जांच करने के लिए हैं:-
1. खुली जगह पर कचरे के निपटान से स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में जागरूकता बढ़ाना
2. मल अपशिष्ट संग्रह स्थलों के क़रीब छोटे उपचार संयंत्रों (Small Treatment plants) की स्थापना करना।
हमने पाया कि लोग नहीं जानते कि उनके शौचालय टैंक से निकला मल कहाँ जाता है। लोगों ने हमें बताया कि शौचालय गड्डो से निकले मल को कृषि वाली ज़मीन या अन्य खुली ज़मीन पर डालते हैं। जब हमने इस बारे में दोनों ज़िलों के शौचालय टैंक क्लीनर से बात की तो उन्होंने हमें बताया कि वे अक्सर ख़ाली खेतों में फेंक देते हैं। कभी-कभी, ग्रामीण उन्हें लैट्रिन गड्ढों से निकली गैर-खाद सामग्री को अपने खेतों में डालने के लिए भुगतान करते हैं। यदि उन्हें गाँव में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिलता है जो अपने खेत में डलवाना चाहता हैं, तो टैंक साफ़ करने वाले लोग गाँव के बाहर कहीं भी मल फेंक देते हैं क्योंकि उनको अगले गाँव में जाना होता है।
जब उन किसानों से बात की गई, जो पहले से अपने खेतों पर मल के टैंकों से निकला मल ख़ाली कराते थे, तो उन्होंने हमें बताया कि गड्ढे से निकली सामग्री खाद के रूप में काम करती है, जिससे उन्हें ज्यादा फसल उपज प्राप्त करने में मदद मिलती है। ज्यादतर किसान खुले में मल अपशिष्ट डाले जाने की प्रथा से होने वाले ख़तरों के बारे में अनजान थे, हालांकि ज्यादातर किसान गड्डे खाली करने वाले मज़दूरों से टैंक से निकले मल “खाद” मांगने नहीं जाते है। लेकिन अगर कोई मिल जाता है तो अपने खेत में डलवा लेते हैं।
खुले में शौच कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है, खासकर छोटे बच्चों के लिए। इसी तरह खुले में अनुपचारित मल अपशिष्ट को जमा करने से मनुष्यों के लिए स्वास्थ्य संबंधी खतरे पैदा हो सकते हैं और भूमि की उत्पादकता क्षमता में कमी हो सकती है।
ग्रामीण स्वच्छता में सुधार के लिए, खेतों और जल निकायों में मल अपशिष्ट को निपटाने जैसी हानिकारक प्रथाओं को तुरंत रोकना होगा। हालांकि, हमारे अध्ययन से पता चला है की अधिकांश किसानों और टैंक क्लीनर को यह नहीं पता था कि खुले में मल अपशिष्ट निपटान जैसी प्रथाएं उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। यहां तक कि टैंक सफ़ाई करने वाले भी डंपिंग से जुड़े खतरों के बारे में नहीं जानते थे।
जागरूकता बढ़ाने से मल अपशिष्ट को डंप करने के बारे में लोगों की ग़लत धारणाओं को बदलने के लिए स्वास्थ्य, स्वच्छता और कृषि विभाग जैसे विभाग मिलकर लोगों में उचित जागरूकता बढ़ा सकते हैं।
हमारे अध्ययन किसी सरकारी नीतियों को सीधे संबोधित नहीं करता है, लेकिन टैंक-ख़ाली करने वालों के सामने आने वाली चुनौतियाँ में नीति-निर्माताओं के लिए उपयोगी जानकारी प्रदान कर सकता है।
हम ग्रामीण भारत में अपशिष्ट प्रबंधन के विषय पर भविष्य में मात्रात्मक और गुणात्मक शोध के लिए तत्पर हैं ताकि यह राष्ट्रीय स्वच्छता नीति को सूचित कर सके।
· कचरे से स्वास्थ्य संबंधी खतरों के बारे में जागरूकता
· टैंक से मल अपशिष्ट को हटाने के लिए परिवहन प्रक्रिया को सरल बनाना
· ब्लॉक या ज़िला स्तर पर छोटे ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करना
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